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जिंदगी की आखिरी सांस तक जीने का संदेश देती है कमांडर मयंक श्रीवास्तव की कहानी, रीढ़ की हड्डी टूटने के बाद बने दिग्गज टेबल टेनिस के खिलाड़ी

दुनिया में कई लोग ऐसे होते हैं जो तमाम चुनौतियों के बीच कभी हार नहीं मानते हैं और हमेशा जीवन में संघर्ष कर आगे बढ़ते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी मयंक श्रीवास्तव की। जो एक सीआरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट भी रह चुके हैं। इसके अलावा मयंक जिमनास्टिक में 60 गोल्ड सहित 177 मेडल जीत चुके है, लेकिन एक हादसे ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी और साथ ही लोगों जिंदगी का जीने का एक नया तरीका सीखा दिया।

प्रयागराज में बने सब-इंस्पेक्टर

मंयक उत्तर प्रदेश के रहने वाले है। जहां जिमनास्टिक में बेहतर प्रदर्शन के चलते उनका 10वीं के बाद सीआरपीएफ में चयन हो गया था।जहां मूलत प्रयागराज में मयंक को सब इंस्पेक्टर के रूप में पहली नौकरी मिली। इसके बाद काफी समय तक उन्होेंने जिमनास्टिक का खेल खेला। खेल की सफलता ने चोट लगने के पहले तक असिस्टेंट कमांडर बना दिया था। इसके बाद उन्होंने काफी लंबे समय तक दोनों को काफी बेहतरीन ढंग से मैनेज किया।

मयंक श्रीवास्तव

हादसे ने बदली जिंदगी

मगर एक बाद प्रैक्टिस के दौरान एक हादसे मे उनकी रीढ़ की हड्‌डी मे चोट आयी, जिस वजह से उन्हें 13 महीने अस्पताल में बिताने पड़े। जहां मयंक की गर्दन के निचले हिस्से ने काम करना बन्द कर दिया, इस हादसे के बाद मानो सब खत्म हो गया था। लेकिन मयंक ने हिम्मत नही हारी और फिर हिम्मत करके एक नया खेल टेबल टेनिस खेलना शुरू कर दिया और एक बार फिर देश का नाम रोशन करने का सोचा। चोट लगने के बाद भी मयंक ने अपनी जीतने की ज़िद नहीं छोड़ी और 2020 मे एक नए खेल के साथ वापसी की और नेशनल पैरा एथलेटिक्स में भी हिस्सा लिया।

प्रतियोगिता में भाग लेने आए इंदौर

मयंक खेल प्रशाल मे राष्ट्रीय पैरा टेनिस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने आए थे। जहाँ मयंक जैसे ही कई और खिलाडी हिस्सा लिया था। मयंक अपने पैरो पर चल नहीं सकते वे व्हीलचेयर और एक सहयोगी के बगैर वे कुछ नहीं कर पाते। मयंक की उंगलियाँ भी काम नही करती जिस वजह से वे रैकेट भी नही पकड़ पाते, खेल के पहले उनका सहयोगी उनके हाथ मे रैकेट बंधता है। मयंक की पत्नी और दो बेटे उनके हर टूनार्मेंट में उनके साथ होते हैं।

कई टूनार्मेंट अपने नाम कर चुके हैं मयंक

मयंक ने जिमनास्टिक में काफी बेहतरीन प्रदर्शन किया था। वें 1994 से 2010 के बीच जिमनास्टिक की तीन विश्व चैंपियनिशप, तीन कॉमनवेल्थ गेम्स, दो एशियन चैंपियनिशप, दो विश्वकप सहित कई टूनार्मेंट अपने नाम कर चुके है।

मयंक का जीवन की लोगों को जीवन जीने की राह दिखाता है साथ ही मयंक का जीवन व्यक्ति की अंतिम सांस तक लड़ने का हौसला भी सभी को देता है। कि चाहे कितनी भी विपरीत परिस्थितियों क्यों न हो लेकिन कभी रूकना नहीं चाहिए और न ही हार मानना चाहिए।

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Arpit Kumar Jain

Arpit Kumar Jain is a Journalist Having Experience of more than 5+ Years | Covering Positive News & Stories | Positive Action & Positive Words Changes the Feelings
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