इंदौर के इस शख्स ने बदली लाखों बच्चों की जिंदगी, सड़क से उठाकर बच्चों को बनाया अधिकारी
दुनिया में कई बच्चे ऐसे होते हैं, जिनका दुनिया में कोई नहीं होता है और वे दुनिया में बेसहारा होते हैं। लेकिन इनकी मदद करने के लिए भगवान कुछ लोगों को भेजता है। जो उन बच्चों सहारा बनते है और दुनिया में उन्हें आगे बढ़ाते हैं। कुछ ऐसी ही कहानी इंदौर की एक संस्थान की। जिसकी स्थापना इंदौर के वसीम इकबाल ने की है। वसीम इकबाल अब तक कई बच्चों की जिंदगी बदल चुके है। वें अब तक अपनी संस्थान के द्वारा लगभग ढाई लाख बच्चों को बाल अधिकारों पर प्रशिक्षित कर चुके है, इसके अलावा वसीम ने दस हजार से ज्यादा बच्चों को बालश्रम से छुड़वाकर शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ा है।
आस की अनोखी पहल
वसीम “आस” नाम का एक एन जी ओ चलाते है इस एन जी ओ ने बच्चो को बालश्रम से मुक्त करने की पहल की जिस वजह से आज कई बच्चे शिक्षित हो रहे है। पहले कोई गैरेज में काम किया करता था तो कोई किसी होटल में काम करता था। अब ये बच्चें बालश्रम से मुक्त होकर शिक्षा का महत्व न सिर्फ खुद समझ गए हैं, बल्कि अब औरों को भी शिक्षा का महत्व बता रहे हैं। वसीम कहते हैं कि अब हम इंदौर के साथ खरगोन, धार एवं देवास जिले में भी काम कर रहें है और लगभग पचास के ऊपर गांवों में हमारी सीधी पहुंच है।
बचपन से कर रहे कठोर मेहनत
वसीम इंदौर के रहने वाले है और एक मिडिल क्लास परिवार से आते है, वसीम के पिताजी धार्मिक शिक्षा के शिक्षक थे। वसीम पांचवी कक्षा में एक दुकान पर रंगों की पुड़िया बांधने का काम करने लगे थे और जो भी रुपये मिलते थे, उससे अपनी पढाई का खर्च निकालते थे। बहुत बाद में पिताजी को मालूम पड़ा तो वे नाराज हुए और उनका काम बंद करा दिया।
जैसे-तैसे दसवीं तक पहुंचे और लेकिन फिर कोई मार्गदर्शन करने वाला नहीं था तो कॉमर्स विषय लेकर बारहवी और बीकॉम पूरा किया। बाद में किसी ने कहा कि सोशल वर्क में एमए कर लो तो वह कर लिया। समाज सेवा में आने का कोई तयशुदा मकसद नहीं था। लेकिन एमए के दौरान समाज कार्य का व्यवहारिक अनुभव लेने बस्तियों में जाना पड़ता था। जहाँ गरीबी, भुखमरी और बदहाल बच्चों में अपना चेहरा नजर आता था तो धीरे-धीरे बच्चों की समस्याओं पर ध्यान देना शुरू किया।
“आस” की शुरुआत
उन्होंने देखा बस्तियों मे समस्याएं बहुत होती है, जहाँ बच्चो का बचपन कही खो जाता है, और वे बच्चे से पढाई से दूर रह जाते है। बचपन का यह हाल देखकर तब यह निश्चय किया कि अब काम की दिशा बचपन की ओर ही होगी। डिग्री होने के बाद अपनी संस्था का पंजीयन किया और नौकरी की, कई वर्ष नौकरी करके कुछ रुपया जमा किया तब तक अपनी संस्था के खर्च बचत से पूरे करते रहे और नौकरी भी चलती रही। बाद में नौकरी स्थाई रूप से छोड़ी और बच्चों के लिए काम आरम्भ किया।
तमाम चुनौतियों का किया सामना
वसीम बताते हैं कि इंदौर जैसे शहर में काम करना बहुत मुश्किल था- राजनीति, गुंडागर्दी, संगठित समूहों की झुग्गियों पर पकड़ और प्रशासन का साथ ना मिलना जैसी बड़ी चुनौतियां थी, पर धीरे-धीरे इन सबसे लड़ना, निपटना सीखे और बच्चों के हकों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। वसीम की संस्था “आस” के पास आज इंदौर जैसे शहर की चाईल्ड लाईन का महत्वपूर्ण काम है। जिसमें रोज उन्हें नई-नई समस्याओं से जूझना पड़ता है।
बच्चो को रेस्क्यू करना सबसे बड़ा चेलेंज
इन सब में सबसे बड़ी समस्या संस्थान को जब आती है जब कोई बच्चा किसी जगह या कहीं फंस जाता है। जब भी टीम बच्चों का रेस्क्यू करवाने जाती है तो सबसे पहले बच्चे ही मना कर देते है और बच्चे कहते हैं कि वे श्रमिक हैं क्योंकिं उन्हे लगता है कि वे जो तीस-चालीस रुपये रोज़ कमाते है उन्हे वह मिलना बन्द हो जाएंगे। दूसरे प्रभावशाली लोग बच्चों से अपने होटल्स या कारखानों में मेहनत करवाते हैं और जब इस तरह की धर पकड़ होती है तो वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके चाईल्ड लाईन की टीम को ही गलत साबित करवा देते हैं।
कोरोनाकाल मे भी “आस” ने की लोगो की मदद
जब कोरोनाकाल के दौरान दुनिया थम गई, लोगों घरों में कैद हो गए तो वही कुछ लोग अपने घरों कघ की पलायन करने लगे। लेकिन इस कठिन समय में भी संस्था आस नहीं रूकी और अपना काम करती रही। इंदौर जैसे शहर में देशभर के लोग मजदूरी करने आते हैं और बदहाल जीवन जीते हैं, परन्तु आस संस्था ने कोविड के दौरान पलायन पर निकले हजारों मजदूर और लोगों को न सिर्फ भोजन, सूखा राशन, जूते, चप्पल से लेकर अस्थाई आवास उपलब्ध करवाया, बल्कि उनके घर जाने तक की व्यवस्था भी प्रशासन के सहयोग से की।
“आस” के काम का पड़ रहा प्रभाव
सामाजिक काम करने में कई चुनौतियों का सामना करना पढ़ता है, लेकिन “आस” की मेहनत का यह प्रभाव पड़ा है कि आस – पास के जिलों मे बच्चों के शोषण के मुद्दे कम हुए है, कई गरीब बस्तियों के बच्चो को शिक्षा मिल रही है, न्याय प्रक्रिया में काम तेजी से हो रहें है, बच्चों के मुकदमों के संदर्भ में, पुलिस, प्रशासन और बड़े व्यवसायियों में संवेदनशीलता बढी है।