जानिए मलखंभ के कोच मनोज प्रसाद के बारे में, जिन्होंने मलखंभ के लिए छोड़ा अपना परिवार
एक ऐसा शख्स जो अपने संघर्ष से एक ऐसे खेल को नई दिशा की ओर ले जा रहा हैं, जिसे भारत में काफी कम पसंद किया जाता है। लेकिन उस शख्स की उस खेल में रूचि होने के कारण इस खेल को एक नए मुकाम पर पहुंचने के प्रयास में लगा हुआ। इस शख्स का नाम है, मनोज प्रसाद सिंह ,जो छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में रहते है। मनोज नारायणपुर में खुद की मलखंभ एकेडमी चलाते है, जहां वें कई बच्चों को मलखंभ की ट्रेनिंग देते है। मनोज प्रसाद पिछले कई सालो से बच्चों को मलखंभ की ट्रेनिंग दे रहे है। उन्होंने मलखंभ के लिए अपने परिवार को भी छोड़ दिया है। मनोज एसटीएफ में भी रह चुके हैं। आईये और जानते हैं मलखंभ के बारे और मलखंभ को सीखने वाले कोच मनोज प्रसाद के बारे में।
मलखंभ के बारे में
मलखंभ भारत के सबसे पुराने खेलों में से एक माना जाता है। यह खेल भारत देश में 1135 सीई से खेला जा रहा है। मलखंभ में खिलाड़ियों के द्वारा पोल या खंभे पर चढ़कर करतब दिखाया जाता है। यह खेल किसी भी व्यक्ति की शरीरिक शक्ति को मजबूत और फुर्तीला बनाने के लिए काफी उपयोगी माना जाता है। मलखंभ तीन प्रकार का होता है। एक पोल मलखंभ, जिसमें खिलाड़ी बड़े पोल पर करतब दिखाते। दूसरा मलखंभ, हैगिंग मलखंभ होता है, जिसमें पोल को हुक और एक जंजीर से लटका दिया जाता है, जिससे मल्लखंब की जमीन और तल के बीच एक गैप रह जाता है। वही तीसरा और अंतिम प्रकार होता है रस्सी मलखंभ। जिसमें खिलाडी रस्सी के सहारे मलखंभ दिखाते हैं।
बचपन गुजरा तंगहाली में
इस खेल को भारत में बुलंदियों पर ले जाने का काम कर रहे हैं, छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में रहने वाले मनोज प्रसाद सिंह। जो नारायणपुर में अपनी खुद की मलखंभ एकेडेमी चलाते हैं। मनोज प्रसाद का जन्म उत्तर प्रदेश के बालिया जिले में हुआ। वें बचपन से काफी तेज़ दौड़ लगाते थे, यही कारण था कि बचपन से ही उनका झुकाव एथेलेटिक्स की ओर काफी ज्यादा रहा है। मनोज के पिता प्राइवेट नौकरी करते थे, उनकी सैलरी से सिर्फ उनके ओर उनके परिवार के सिर्फ खर्चे पूरे हो पाते थे न की उनके परिवार के सपने। लेकिन कई अलग अलग विपरीत परिस्थियों के बाद भी मनोज ने अपने सपने को पूरा करने के लिए काफी मेहनत की। मनोज बताते है कि बचपन में दौड़ने के लिए उनके पास अच्छे स्पोर्ट्स जूते नहीं थी, लेकिन फिर भी वें अपने सपने को पूरा करने के लिए नंगे पैर दौड़ते थे। उनकी मेहनत का फल उन्हें जल्द ही मिला भी सही। उन्होंने कम उम्र में ही कई राज्य व राष्ट्रीय प्रतियोगिताओ को जीता ओर पूरे देश में अपने नाम का लोहा मनवाया। उनके इस प्रदर्शन से सभी लोग काफी खुश हुए।
एसटीएफ में हुए शामिल
मनोज के अच्छे प्रदर्शन का और उनकी मेहनत का फल उन्हें सरकारी नौकरी के रूप में मिला। ये दौर मनोज प्रसाद के लिए काफी अहम दौर था। जब वें 18 साल के हुए तब उन्हें देश के कई क्षेत्रों में सरकारी नौकरी का ऑफर मिला। जहां उन्होंने आर्मी के द्वारा देश की सेवा करना का मन बनाया। इसके बाद वें एसटीएफ (स्पेशल टास्क फाॅर्स ) में शामिल हुए। मनोज की पोस्टिंग नागलैंड में हुई। इसके कुछ समय बाद साल 2016 में उन्हें मलखंभ सीखने का मौका मिला। वें मलखंभ सीखने के लिए विशेष तौर पर महाराष्ट्र गए। जहां उन्होंने मलखंभ के बारे में बड़े ही करीब से जाना और इसकी एबीसीडी सीखी। वें इस दौरान मलखंभ के जानकार काफी प्रसन्न हुए और इसको आगे ले जाने के बारे में विचार किया।
बच्चों को ट्रेनिंग देना शुरू की
महाराष्ट्र से मलखंभ की ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मनोज की पोस्टिंग छत्तीसगढ़ के बस्तर अबूझमाड़ में हुई। यह इलाका आदिवासियों से घिरा हुआ इलाका साथ लगभग पूरा क्षेत्र नक्सलवादी प्रभावित है। इस क्षेत्र में मनोज के लिया काफी नई और बड़ी चुनौतियां थी। लेकिन इनके लिए वें तैयार थे। यहाँ से मनोज की ज़िन्दगी पूरी तरह बदल गयी। एसटीएफ में नौकरी के दौरान ही बच्चों का मलखंभ सीखने का ख्याल आया। जिसके बाद पहले उन्होंने क्षेत्र के बच्चों को एकत्रित किया और उन्हें मलखंभ के बारे में बताया और खेल सीखने के लिए बाकि चीज़ो का बंदोबस्त किया। इसके कुछ समय स्वंत्रता दिवस पर उन्हें अपने नगर के एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपने सिखाये हुए खेल का प्रदर्शन करने का मौका मिला। जहां उनके शिष्यों ने जबरदस्त मलखंभ का प्रदर्शन किया। जिसे देखकर हर कोई हैरान हो गया और सभी लोगों ने उनकी काफी तारीफ की। यह मनोज प्रसाद के लिए मलखंभ के दौर में पहली सफलता थी।