जानिए कौन है बिहार की किसान चाची, जिन्होंने 5 रूपये में आचार बेचकर खड़ा किया करोड़ों रुपये का बिजनेस
कुछ महिलाएं ऐसी होती है जो अपने काम से पूरे समाज की तस्वीर बदल देती हैं और समाज को एक नई राह दिखाती है। कुछ ऐसी ही काम किया है, बिहार की किसान चाची ने। जिन्होंने बिहार के एक छोटे से गांव में साइकिल से आचार बेचना शुरू किया और आज उनका करोड़ों रुपये का बिजनेस है। आईये जानते है बिहार की किसान चाची के बारे में।
गरीब परिवार में हुआ जन्म
किसान चाची का नाम राजकुमारी है। जो बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के आनंदपुर गांव की निवासी है। उनका जन्म और पालन पोषण एक गरीब परिवार में हुआ। गरीबी के कारण उनके परिवार में हमेशा पैसे की तंगी बनी रहती थी। गरीबी से लड़ने के लिए राजकुमारी ने समय समय पर कोशिश की। इसके लिए उन्होंने सबसे खेती का तरीका अपनाया। उन्होंने सबसे पहले तंबाकू की खेती की। इसमें सफलता मिलने के बाद उन्होंने पपीता की खेती की।
खेती के लिए मिले कई पुरस्कार
राजकुमारी को खेती करना काफी पसंद आया। इसके लिए उन्होंने कई अलग अलग यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों से भी मिलना शुरू किया और खेती के नए नए तरीकों जानना शुरू किया। इसके बाद खेती में उन्होंने सब्जियों को भी उगाना शुरू किया। राजकुमारी ने कृषि मेला में खेती की प्रदर्शनी में भी लगाना शुरू कर दिया। जहां मेलों में उनकी फसलों को काफी पसंद किया जाने लगा। उन्हें और उनकी उगाई बेहतरीन सब्जियों को पुरस्कार मिलने लगे। धीरे-धीरे उनकी प्रसिध्दता बिहार के साथ-साथ दूसरे प्रदेशों में भी मिलने लगी।
तमाम चुनौतियों के बीच सीखी साइकिल
इसके बाद साल 1990 के बाद राजकुमारी सिंह ने आचार पर हाथ आजमाना शुरू किया। उन्होंने आचार बेचना शुरू किया। लेकिन उनके सामने इसे दूसरों गांव में बेचने की चुनौती खड़ी हो गई। क्योंकि उस समय एक गांव से दूसरे गांव में जाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं थे। इस चुनौती को देखते हुए राजकुमारी ने साइकिल सीखने की ठानी। साइकिल चलाने के लिए भी राजकुमारी को गांव के लोगों से बहुत कुछ सुनना पड़ा। इसके अलावा एक बार साइकिल सीखते हुए गिर भी गई लेकिन तमाम चुनौतियों के बाबजूद राजकुमारी ने साइकिल सीखना जारी और कुछ समय बाद साइकिल सीख गई।
स्वासहायता समूह के साथ शुरू किया आचार का बिजनेस
राजकुमारी ने स्वयं सहायता समूह के जरिए महिलाओं से. जुड़ी और फिर 350 से अधिक महिलाओं के साथ अचार बनान शुरू किया। उन्होंने अचार तैयार करने के बाद वह दूसरे गांवों में साइकिल से आचार बेचने निकल जाती थी। वें शुरुआत में 5-5 रुपये में आचार बेचने लगीं। इस दौरान कई लोग उनका बहुत मजाक उड़ाते थे। इसके बाद किसान चाची ने अपनी टीम में से महिलाओं को अचार बेचने के लिए प्रशिक्षण देना शुरू किया। इसके बाद यह घर का अचार लोगों को पसंद आने लगा और इसकी बिक्री शुरू हो गई।
आचार बना कई लोगों के लिए रोजगार का माध्यम
किसान चाची का आचार बिकता गया और धीरे-धीरे इसकी प्रसिध्दता बढऩे लगी। जिसके कारण उनके आचार की भी मांग बढ़ने लगी। आचार की मांग बढ़ने के कारण उसका सप्लाई भी बढ़ गया। उन्होंने अपने साथ कई और लोगों को जोड़ना शुरू कर दिया और अपने समूह के द्वारा कई लोगों को रोजगार भी मिलने लगा।
अब हो रही करोड़ों रुपये की कमाई
किसान चाची वर्तमान में भी अपने हाथों से आचार बनाती है और बेचती है। वर्तमान में उनके समूह के साथ दो कंपनियों के करार है। जहां खादी ग्रामोद्योग विभाग और बिहार सरकार के बिस्कोमान से प्रत्येक महीने उनके समूह को 5 से 10 लाख रुपये की कमाई होती है।