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ग्वालियर के इस युवा ने पुरातन पध्दति से बनाया आधुनिक रैन वाॅटर हार्वेस्टिंग सिस्टम, सिस्टम के रख-रखाव का खर्च मोबाईल रिचार्ज से भी कम

देश में एक बार फिर मानसून का मौसम शुरू हो गया है। देश में एक बार बारिश के पानी को बचाने के लिए जगह जगह रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगना शुरू हो गए। लेकिन ये रैन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम गर्मी के समय खराब हो जाते हैं। जिसके कारण पानी की पूर्ति होने में काफी समस्याएं होती है। इन समस्याओं से निजात पाने के लिए ग्वालियर के एक युवा ने पुरातन पध्दति से एक आधुनिक रैन वाॅटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाया है। जो पानी के जलस्तर को 250 फीट से 75 फीट कर देता है। जिससे लोगों को किसी भी सत्र में पानी की समस्या से नहीं जूझना पड़ता है।

सदियों पुरानी पद्धति से ली प्रेरणा

इस रैन वाॅटर सिस्टम को तैयार किया है, ग्वालियर के युवा पंकज तिवारी ने। जिन्होंने सदियों पुरानी पद्धति से प्रेरणा लेकर रेन वाटर प्यूरीफिकेशन एंड रीचार्जिंग सिस्टम तैयार किया। इसका पेटेंट उनके नाम पर है। पुरातन तकनीक से रेन वाटर हार्वेस्टिंग को उन्नत करने की सलाह शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने पंकज को दी थी। उन्होंने बताया था कि पुराने समय में पत्थर का कोयला, चारकोल, संगमरमर के टुकड़ों और कंकड़ बिछाकर पानी को शुद्ध किया जाता था। एक ही आकार के घड़ों को एक के ऊपर एक रखकर उनमें इन चीजों की परतें बिछाई जाती थीं और सबसे ऊपर के घड़े में अशुद्ध पानी रहता था। घड़ों की तली में छेद कर पानी को दूसरे घड़ों तक पहुंचाया जाता था। इस प्रक्रिया में सबसे नीचे के घड़े में शुद्ध पानी एकत्रित हो जाता था।

पद्धति को अपने सिस्टम में आजमाया

इस पद्धति को पंकज तिवारी ने अपने सिस्टम में आजमाया है। पंकज तिवारी ने बरसात के पानी को बोरिंग तक पहुंचाने के लिए पाइपनुमा सिस्टम बनाया है। इसमें चार चैैंबर हैं। पहले चैंबर में कोयले की परत बिछाई गई है। इसमें बरसात का पानी सीधे पहुंचता है। दूसरे चैंबर की चौड़ाई अपेक्षाकृत कम है, जिसमें चारकोल की परत से पानी का दूसरी बार शुद्घिकरण किया जाता है। तीसरा चैंबर और संकरा हो जाता है। इसमें संगमरमर के टुकड़ों से पानी में मौजूद मोटी गंदगी दूर हो जाती है। चौथा चेंबर सबसे पहले चेंबर जितना चौड़ा होता है और इसमें कंकड़ की परतें होती हैं। चेंबर की चौड़ाई इस कारण कम की जाती है, ताकि बरसात के पानी का दबाव कम होता जाए और पानी का शुद्धीकरण धीरे-धीरे हो सके।

रैन वाॅटर हार्वेस्टिंग सिस्टम

सिस्टम बनाने के दौरान मिले ताने

पंकज ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक पर प्रयोग और अध्ययन तब शुरू किया, जब इसके बारे में जागरूकता कम थी। उस समय वह पानी बचाने के लिए काम कर रहे थे, लेकिन जानकारी न होने के कारण लोग इसे समझ नहीं पाते थे। पंकज के जानने पहचाने वाले भी उन्हें ताने देते थे, जिसके चलते उन्होंने रेन वाटर हार्वेस्टिंग का अध्ययन और प्रयोग बंद कर दिया था। वर्ष 2016 में जब जल संकट के चलते लातूर में ट्रेन से पानी पहुंचाया गया, तब पंकज को लगा कि यह सही समय है। उन्होंने अपना अध्ययन पुन: आरंभ किया और यह सिस्टम बनाया।

सिस्टम का खर्च मोबाईल रिचार्ज से भी कम

पंकज के इस सिस्टम के रखरखाव का खर्च आज कल के मोबाइल रिचार्ज से भी कम है। उनके सिस्टम का खर्च सिर्फ 200 रपये सालाना है। इसमें साल में एक बार सिर्फ कोयला और चारकोल को बदला जाता है। ढाई-ढाई किलो कोयला व चारकोल खरीदकर चेंबरों में डाला जाता है। बाकी के दो चेंबरों में मौजूद संगमरमर के टुकड़ों और कंकड़ों को घिसकर साफ कर लिया जाता है।

ग्वालियर में सफल हुआ सिस्टम

इस रैन वाॅटर हार्वेस्टिंग सिस्टम के सफल होने के कई सफल उदहारण ग्वालियर में देखने को मिले हैं। जहां वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कार्यालय में सभा कक्ष के पीछे सूखी बोरिंग में अब 102 फीट पर पानी है। इसी तरह महाराजपुरा थाने में 150 फीट गहरे सूखे बोर में पांच फीट गहराई पर पानी मिलने लगा है। इसका टोटल डिजाल्व सालिड (टीडीएस) स्तर 158 और पीएच स्तर 9.5 है, जो पेयजल मानकों पर खरा है। आरोग्यधाम अस्पताल में भी सूखे बोरवेल में अब पानी आ गया है। बोरवेल में मोटर पड़ी होने के कारण भूजल स्तर नापा नहीं जा सका। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में रैपिड एक्शन फोर्स परिसर में भी यह सिस्टम लगाया गया था। अब यहां भी लगभग 100 फीट पर पानी उपलब्ध है। पंकज को इस रैन वारट हार्वेस्टिंग सिस्टम के लिए पुलिस द्वारा सम्मानित भी किया गया है।

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Arpit Kumar Jain

Arpit Kumar Jain is a Journalist Having Experience of more than 5+ Years | Covering Positive News & Stories | Positive Action & Positive Words Changes the Feelings
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