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इंदौर की इस महिला ने सोलर ऊर्जा से बदली गांव की तस्वीर, महिला को राष्ट्रपति भी कर चुके है सम्मनित

प्रकृति ने हमें चारों ओर से घेर रखा है, लेकिन विज्ञान की तकनीक के बढ़ते चलन के कारण प्रकृति का अस्तित्व भी धीरे-धीरे खतरे में पड़ते जा रहा है। विज्ञान की तकनीक के बढ़ते चलन और प्राकृतिक के घटते अस्तित्व को रोकने के लिए|यह बात इंदौर के पास के गांव के महिला और पुरुषों को बड़े अच्छे से समझ आ गयी और उनके इस काम के कारण पूरा गांव भारत देश में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल रहा।

इस गाँव की कायापलट करने में एक ऐसी महिला का हाथ है ,जिन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में व्यतीत कर दिया और आज भी वे अपने इस काम से पीछे नहीं हटती इनका पूरा नाम जनक पलटा मि‍‍क्गिलिगन है। यह इंदौर के नजदीक सनावदियां गांव में रहती है । डॉ. जनक पलटा जनक दीदी के नाम से भी मशहूर है।

तीन बार दी मौत को मात
डॉ. जनक का जन्म 16 फरवरी 1948 को पंजाब के जालंधर में हुआ था। डॉ जनक पलटा अब तक तीन बार मौत को भी मात दे चुकी हैं । 15 साल की उम्र में जनक पलटा जी की ओपन हार्ट सर्जरी हुई। वे इस दर्द से उबर कर सामने आई। असाध्य रोग कैंसर से लड़कर वे कैंसर विजेता बनी। जनक जी की शादी उत्तरी आयरलैंड के जिम्मी मि‍‍क्गिलिगन से हुई ,जिनका पूरा जीवन हिंदुस्तान में ही बीता।जिस सड़क दुर्घटना में उनके पति जिम्मी चले बसे जनक पलटा जी भी उस समय उनके साथ थीं लेकिन वे सुरक्षित रहीं और जिम्मी चले गए।

कई लोगों का किया निशुल्क इलाज
इन सबके बाद जनक पलटा जी ने कहा कि अगर मैं इतने भयावह हादसों से निकल कर भी जिंदा हूं ,तो अवश्य ही भगवान की कोई खास मंशा है मुझसे कुछ खास करवाने की अब मैं मेरा पूरा जीवन आम लोगों की सेवा में समर्पित करना चाहूंगी। इसके बाद इन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और कई गांवों में आम लोगों के बीच रहकर। डाॅ जनक पलटा ने निशुल्क इलाज किया। झाबुआ और 302 गांवों जैसे सुदूर और पिछड़े इलाकों में जाकर बरसों पहले फैली ‘नारू’ बीमारी से मुक्त कराने में भी जनक जी का ही योगदान है।

जनक पलटा को जनक दीदी के नाम से भी जानते है

इंदौर की मिट्टी आयी पसंद
इस दौरान जनक जी ने इंदौर का भी दौरा किया। इन्हें इंदौर शहर पसंद आया और इंदौर की मिट्टी को अपना ही बना लिया। उन्होंने 1985 में इंदौर के सनावदियां गांव में बरली डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट फॉर रूरल वुमन नामक प्रशिक्षण संस्थान शुरू किया था। इनके पति जिम्मी मि‍‍क्गिलिगन प्रकृति के काफी करीब थे। कम से कम संसाधनों से निर्मित आकर्षक सौर ऊर्जा से संचालित उपकरणों को समझाने में वें उनकी मदद करेंगे, लेकिन एक दुखद हादसे का शिकार होकर जिम्मी जनक पलटा जी को छोड़कर चले गए उनकी याद में पत्नी इंदौर के सनावदिया गांव में एक अनोखा काम शुरू किया।
गांव में शुरू किये सोलर ऊर्जा प्लांट
सत्तर साल की उम्र में भी वे सनावदिया में पूरी ऊर्जा के साथ समाजसेवा के कामों में संलग्न हैं। यहाँ वे युवाओं और महिलाओं को विभिन्न रोजमूलक प्रशिक्षण देती हैं। छोटी-सी पहाड़ी पर अपने पति के हाथों से बनाए घर में रहती हैं। यहाँ कि खासियत है कि इस घर में बाजार से शक्कर, तेल, चायपत्ती के अलावा कुछ नहीं आता। सनावदिया गांव के बत्तीस घरों के सोलर से पैदा हो रही बिजली से स्ट्रीट लाइट जलती है। एक किलोवॉट पवन ऊर्जा से और एक किलोवॉट बिजली सोलर प्लेट से बनती है। ये सब उनके पति जिमी के हाथों से ही बना है।

राष्ट्रपति से सम्मान पाती जनक पलटा

राष्ट्रपति से पा चुकी है पद्मा श्री
घर के आसपास जैविक खेती होती है। फिनाइल से लेकर साबुन, होली के रंग तक वे खुद अपने हाथों से बनाती है। हाल ही में जैविक सेतु नामक एक कांस्टेप्ट को लेकर आई हैं। हर हफ्ते लगने वाले इस बाजार में जैविक चीजें ही मिलती है। सनावदिया में हर साल 1 से 6 जून तक सोलर सप्ताह मनाया जाता है। लोगों तक आसानी से पहुँचने के लिए इस उम्र में भी सोशल साइट पर लगातार हर विषय पर अपडेट करती रहती हैं। वे करीब सात किताबों की लेखक भी हैं। साथ हो उन्हें पद्मा श्री पुरस्कार भी मिल चुका है।

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