जानिए कैसे होते हैं ग्रीन पटाखे, पिछले तीन-चार सालों में क्यों बढा़ इनका प्रचलन
इस 24 अक्टूबर को प्रकाश का पर्व यानि दीवाली का त्यौहार मनाया जाएगा। इस दिन पूरे देश में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ इस त्यौहार को मनाया जाएगा। इस दिन कई लोग पटाखे भी फोड़गे। लेकिन पिछले कुछ सालों देशभर में बढ़ते प्रदूषण के कारण देश के कुछ राज्यों में पटाखों पर प्रतिबंध भी लगा दिया है। इस दौरान सरकार ने इन राज्यों में सिर्फ ग्रीन पटाखों को फोड़ने की ही परमिशन दी है। जिन्हें वह फोड़ सकते हैं। इन राज्यों में दिल्ली, हरियाणा और पंजाब जैसे कई बड़े राज्य शामिल हैं। लेकिन आज भी कई लोग ऐसे है, जो ग्रीन पटाखों के बारे में नहीं जानते हैं कि ग्रीन पटाखे क्या होते हैं और यह कैसे बनते हैं। आज हम इस लेख में ग्रीन पटाखों के बारें में विस्तार से बताने वाले है।
ग्रीन पटाखे कैसे होते हैं
ग्रीन पटाखे वें होते हैं, जो पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करते हैं। यह पटाखे सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं। इन पटाखों की बनावट भी समान्य पटाखों की तरह होती है साथ ही इन पटाखों के फूटने पर आवाज़ भी सामान्य पटाखों की तरह ही आती है। लेकिन यह यह पटाखे सामान्य पटाखों की तुलना में 40 से 50 फीसदी कम प्रदूषण करते हैं। इन पटाखों की खोज राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान ने की थी।
सबसे पहले कब हुए थे इस्तेमाल
हम आपको बता दें कि देश में पटाखों के बढ़ते प्रदूषण के कारण ख़ासतौर पर देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण को ध्यान में रखते हुए ग्रीन पटाखों का अविष्कार किया गया। इन पटाखों का अविष्कार वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अधीन राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) ने ग्रीन पटाखों की खोज की। जिसके बाद साल 2019 में देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ग्रीन पटाखों को फोड़ने की अनुमति दी और साल 2019 में इन्हें पहली बार इस्तेमाल किया गया।
जानिए कैसे बनते ग्रीन पटाखे
सामान्य पटाखों की तरह ग्रीन पटाखे बनाने में भी एल्युमीनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन जैसे प्रदूषणकारी रसायनों का इस्तेमाल होता है। इन तत्वों का इस्तेमाल कम मात्रा में किया जाता है, जिससे पटाखों से होने वाला उत्सर्जन 30 प्रतिशत तक कम हो जाता है। कुछ ग्रीन पटाखे ऐसे भी होते हैं, जिनमें इनका इस्तेमाल बिलकुल भी नहीं होता।
चार प्रकार के होते है ग्रीन पटाखे
ग्रीन पटाखे भी काफी हद तक सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं। मुख्य तौर पर यह चार प्रकार के पटाखे होते हैं।
- सेफ़ वाटर रिलीज़र – ये पटाखे जलने के बाद पानी के कण पैदा करेंगे, जिसमें सल्फ़र और नाइट्रोजन के कण घुल जाएंगे. नीरी ने इन्हें सेफ़ वाटर रिलीज़र का नाम दिया है। पानी प्रदूषण को कम करने का बेहतर तरीका माना जाता है। पिछले साल दिल्ली के कई इलाक़ों में प्रदूषण का स्तर बढ़ने पर पानी के छिड़काव की बात कही जा रही थी।
- स्टार क्रैकर – नीरी ने इन पटाखों को स्टार क्रैकर का नाम दिया है, यानी सेफ़ थर्माइट क्रैकर। इनमें ऑक्सीडाइज़िंग एजेंट का उपयोग होता है, जिससे जलने के बाद सल्फ़र और नाइट्रोजन कम मात्रा में पैदा होते हैं। इसके लिए ख़ास तरह के केमिकल का इस्तेमाल होता है।
- शफल क्रैक – इस पटाखे में सामान्य पटाखों की तुलना में 50 से 60 फ़ीसदी तक कम एल्यूमीनियम का इस्तेमाल होता है। इसे संस्थान ने सेफ़ मिनिमल एल्यूमीनियम यानी शफल का नाम दिया है।
- अरोमा क्रैकर्स – इन पटाखों को जलाने से न सिर्फ़ हानिकारक गैस कम पैदा होगी बल्कि ये बेहतर खुशबू भी बिखेरेंगे।
ग्रीन पटाखों के दाम
हम आपको बता दे कि इन ग्रीन पटाखों के दाम सामान्य पटाखों की तरह ही होते हैं। बल्कि इनमें कुछ पटाखे काफी सस्ते भी होते हैं। आप इन पटाखों को अपने शहरों के नजदीकी पटाखा बाजारों से खरीद सकते हो। हम उम्मीद करते हैं कि इस लेख से आपको ग्रीन पटाखों के बारे में काफी कुछ जानने को मिला होगा साथ ही हम उम्मीद करते हैं कि पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए आप सभी इस बार ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल करेंगे।