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कानपुर के दो युवाओं ने शुरू किया हेल्प अस ग्रीन स्टार्टअप , गंगा में फेंके जाने वाले फूलों से कमा रहे करोड़ों रुपये

गंगा नदी भारत की सबसे बड़ी और सबसे पवित्र नदी है। इस नदी में रोजाना टन के वजन में फूल फेकें जाते हैं। जिससे यह नदी भी प्रदूषित होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं, नदी में फेंकें जाने वाले फूलों से कानपुर के दो युवा करोड़ों रुपये कमा रहे हैं और सैकड़ों लोगों को रोजगार प्रदान कर रहे हैं।

हम जिस स्टार्टअप की बात कर रहे हैं, उस स्टार्टअप का नाम है ‘हेल्प अस ग्रीन’। जो उत्तर प्रदेश के कानपुर में दो युवा करण और अंकित चलाते हैं। इस स्टार्टअप के माध्यम से यह युवा रोजाना गंगा नदी में फेंके जाने वाले फूलों से अगरबत्ती बनाते हैं और उनसे लाखों – करोड़ों रूपये कमाते हैं। साथ ही यह सैकड़ों महिलाओं और पुरूषों को रोजगार भी प्रदान करते हैं। इनके स्टार्टअप को यूएन से भी सम्मान मिल चुका है। आईये विस्तार से जानते हैं, इनके स्टार्टअप के बारे में।

कोचिंग में बने दोस्त

अंकित अग्रवाल और करण रस्तोगी दोनों दोस्त है। जहां अंकित अग्रवाल ने पुणे के सिम्बोसिस काॅलेज से इंजीनियरिंग की तो वही करण ने बारविक बिजनेस काॅलेज से बीबीए की डिग्री हासिल की। दोनों ने अलग अलग अपनी पढाई की थी। इन दोनों की मुलाकात एक कानपुर के कोचिंग सेंटर में हुई थी। जहां दोनों प्रतियोगी परीक्षा एवं उच्च शिक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग आया करते थे। कुछ मुलाकातों के बाद दोनों दोस्त बन गए।

गंगा में फेंकते हुए फूलों को देखकर आया आईडिया

दोनों को ही कुछ अलग करने का मन था। दोनों अक्सर गंगा किनारे मंदिरों पर जाया करते थे। वें अक्सर देखते थे कि गंगा नदी में काफी मात्र में फूलों को फेंक दिया जाता है। उन्होंने इन फूलों से ही कुछ अलग करने का सोचा और गंगा नदी में फूलों को फेंकने से बचाने का सोचा। इसके बाद उन्होंने गंगा को फूलों से प्रदूषित मुक्त करने के लिए ‘हेल्प अस ग्रीन’ स्टार्टअप शुरू करने का सोचा। जो गंगा किनारे से फूलों को इकट्ठा करते है और उन्हें नदी में फेंकने से बचाते हैं।

लोगों ने कहा ‘पागल’

अंकित और करण ने शुरुआत में 75 हजार रूपये का निवेश कर, अपने इस स्टार्टअप की शुरुआत की। उन्होंने पहले फूलों से वर्मीकम्पोस्ट बनाने की शुरुआत की। शुरूआत में लोगों ने इन्हें यह करने पर ‘पागल’ कहा, लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और अपना काम जारी रखा। अंकित और करण की बनाई हुई वर्मीकम्पोस्ट लोगों को पंसद आने लगी और कई लोग इसे खरीदने लगे। दोनों ने इस वर्मीकम्पोस्ट का नाम ‘मिट्टी’ रखा। मिट्टी को लेकर स्टार्टअप के संस्थापक ने बताया कि शून्य कार्बन फुटप्रिंट वाले रसायनों का एक सुरक्षित और स्मार्ट विकल्प है। सभी प्रकार की गंदगी से मुक्त होती है, इसलिए मिट्टी के उपयोग से उगने वाले संयंत्र और सब्जियाँ जैविक होती हैं।

मिट्टी के बाद शुरू अगरबत्ती बनाना शुरू किया

मिट्टी की सफलता के बाद अंकित और करण ने फूलों से अगरबत्ती बनाने की प्रक्रिया शुरू की। उन्होंने कई प्रकार की खुशबूदार अगरबत्तीयां बेचना शुरू किया। जिन्हें लोगों ने काफी पसंद किया। यह शुरुआत में पैकेट में अगरबत्तीयां बेचते थे। जिसके कारण कचरा होता था। कुछ समय बाद उन्होंने तुलसी के बीज वाले कागज में अगरबत्तीयां बेचना शुरू की ताकि लोग तुलसी के बीज को अपने घर या आंगन में लगा सके।

कचरा बीनने वाली महिलाओं को दिया रोजगार

कुछ समय में अंकित और करण का यह स्टार्टअप चल निकला। अब उन्हें शहर के ज्यादा मंदिरों से ज्यादा फूलों को जुटाने की जरूरत थी। इसके लिए उन्हें अधिक लोगों की आवश्यकता थी। उन्होंने इसके लिए सैकड़ों कचरा बीनने वाली महिलाओं को अपने साथ जोड़ा और उन्हें रोजाना 200 रूपये देना प्रारंभ किया। इससे कई महिलाओं और बच्चों को रोजगार मिला। उन महिलाओं ने इनके साथ काम करना शुरू किया।

रोजाना 11 हजार किलो फूल करते हैं इक्कठे

इन महिलाओं को रखने के बाद इनके स्टार्टअप में काफी तेजी आयी। अब यह रोजाना गंगा किनारे और शहर के मंदिर मस्जिदों से लगभग 11 हजार फूल इकट्ठा करते हैं। अब इनके द्वारा बनाई गई अगरबत्तीयां सिर्फ कानपुर और देश में नहीं बिकती बल्कि स्विट्जरलैंड और जर्मनी जैसों देशों में भी बेची जाती हैं।

यूएन ने किया सम्मानित

अब करण और अंकित का यह स्टार्टअप एक यूनिकॉर्न स्टार्टअप है। इनके स्टार्टअप को फोर्ब्स के टाॅप 30 स्टार्टअप में शामिल किया जा चुका है। इसके अलावा इनके स्टार्टअप को हाल ही में यूएन में भी सम्मान मिल चुका है। करण और अंकित अपने स्टार्टअप के माध्यम से देश में टाटा इनोवेशन स्टार्टअप चैलेंज भी जीत चुके हैं। करण और अंकित अपने स्टार्टअप को और आगे बढ़ाना चाहते हैं।

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