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UP ARMY VILLAGE : उत्तर प्रदेश का यह गांव बना सैनिक गांव, हर साल सैकडों की संख्या में युवा होते हैं भर्ती

उत्तर प्रदेश में सैनिक गांव से प्रसिद्ध है यह गांव

यदि देश में सीमा के भीतर देश के नागरिक सुख चैन और शांति से रहते हैं तो उसका सबसे बड़ा श्रेय देश के सैनिकों (Army) को जाता है जो बार्डर पर रुक जाता है 24 घंटे देश के नागरिकों की रक्षा करता है। इन सैनिकों को देश का सबसे बड़ा देशभक्त भी माना जाता है। उनके देशभक्तों को देखते ही उत्तर प्रदेश ( Uttar Pradesh) के जिले में एक गांव में हर साल एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों युवक सेना में भर्ती होते हैं। यही कारण है कि इस गांव को सैनिक गांव (Army Village) के नाम से जाना जाता है। आईये जानते हैं इस गांव के बारे में विस्तार से।

अब तक लगभग 1300 युवा सेना में जा चुके

उत्तर प्रदेश (Uttar pradesh) के दर्ज जिले के पचवस गांव में लोगों को शुरू से सेना में जाने का जज्बा है। देश प्रदेश में कहीं भी सेना की भर्ती हो सकती है, लेकिन इस गांव के युवा सेना में लगभग पक्की पक्की हो जाती है। युवाओं के जोश के कारण यह गांव ‘सैनिक गांव’ (Army Village) के रूप में प्रसिद्ध हो गया है। अब तक यहां के करीब 1300 युवा सेना में भर्ती देश की सेवा कर चुके हैं। ये कर्नल और ब्रिगेडियर रैंक तक के अधिकारी हैं। युवाओं से प्रेरित गांव के युवाओं की भी पहली पसंद सेना की नौकरी बनने लगी है।

कर्नल ने जगाई सेना में भर्ती होने की ज्वाला

इस गांव में युवा सेना में तो पहले भी भर्ती होते रहे हैं, लेकिन 1971 से जोश व जज्बे का रूप ले लिया। गांव निवासी कर्नल केशरी सिंह प्रेरणास्रोत बने। 1971 में सैनिक भर्ती बोर्ड का चेयरमैन बनने के बाद उन्होंने गांव में प्रशिक्षण शुरू कराया। इसकी जिम्मेदारी सेवानिवृत्त और अवकाश पर गांव आने वाले जवानों को दी। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक इंद्रासन सिंह राजकीय डिग्री कालेज के परिसर में यह प्रशिक्षण आज भी जारी है। यहां सुबह और शाम अभ्यास करने वालों की भीड़ जुटती है। पिछले कुछ वर्षों से आसपास के गांवों के युवा भी इसमें शामिल होने लगे हैं। गांव का कोई ऐसा घर नहीं है, जिसमें सेना का कोई जवान अथवा अधिकारी न हो। गांव के जयप्रकाश सिंह इस समय ब्रिगेडियर हैं।

पूर्वजों का इतिहास युवाओं को प्रेरित करता है

पूर्व ब्लाक प्रमुख लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि क्षत्रिय बहुल गांव में अनुसूचित और पिछड़ी जाति के लोग भी हैं। हर परिवार के लोग सेना में है। सच तो यह है कि अन्य नौकरी में युवाओं की रुचि नहीं है। गांव के सतीश सिंह, धर्मेंद्र सिंह, योगेश यादव ने बताया कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नायक रहे अमोढ़ा के राजा जालिम सिंह के वंशजों के इस गांव को पूर्वजों से राष्ट्रभक्ति का जज्‍बा विरासत में मिला है। स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे पूर्वंजों का इतिहास गांव के युवाओं को देश की सेवा के लिए हमेशा प्रेरित करता रहता है।गांव की बेटियां भी आगे सेना में भर्ती होने के मामले में सिर्फ गांव के बेटे ही आगे नहीं बल्कि गांव की बेटियां भी आगे हैं। सेना में भर्ती होना अब उनकी भी प्राथमिकता बन गई है। सेना से सेवानिवृत कर्नल अभय सिंह की पुत्री सुष्मिता सिंह सेना में लेफ्टिनेंट हैं। वहीं गांव के संजय सिंह की पत्‍नी प्रतिभा सिंह सेना में इस समय मेजर हैं। इसके अलावा गांव की कई युवतियां जूनियर कमीशंड आफिसर (जेसीओ) के लिए तैयारी कर रहीं हैं। गांव कुल आबादी पांच हजार और 795 परिवार हैं। इसमें गांव के 56 लोग सेना में अधिकारी हैं। 85 जूनियर कमीशंड आपिफसर तथा 11 सौ से अधिक लोग वायु और थल सेना में सैनिक हैं।

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