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अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस : ग्वालियर के इस दिव्यांग तैराक ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश को दिलाई अलग पहचान, 12℃ तापमान के बीच 39 किमी स्विमिंग कर बनाया विश्व रिकॉर्ड

राष्ट्रीय दिव्यांग तैराकी चैंपियनशिप में जीते लगातार 24 स्वर्ण पदक

यदि आप लक्ष्य के प्रति सदैव अग्रसर रहेगें और लगातार सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ते रहेगें तो आपको एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। यह कहना है मध्य प्रदेश के विक्रम अवार्डी दिव्यांग तैराक सत्येन्द्र सिंह लोहिया का। जिन्होंने दिव्यांग होने के बावजूद विश्व पटल पर देश का नाम रोशन किया और देश के लिए राष्ट्रीय – अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते हैं। उन्होंने हाल ही में 12℃ तापमान के बीच ठंडे पानी में 14 घण्टे 39 मिनिट तैरकर नॉर्थ आयरलैंड में नॉर्थ चैनल पार विश्व रिकॉर्ड बनाया। आईये जानते है दिव्यांग सत्येन्द्र सिंह लोहिया की कहानी के बारे में।

बचपन में हुए दिव्यांग

सत्येन्द्र सिंह का जन्म भिंड के गाता गांव में हुआ। सत्येन्द्र को बचपन में रिएक्शन के कारण उनके पैरों में समस्या आ गई। जिसके कारण उनके दोनों पैरों से वह सही ढंग से नहीं चल पाते थे। सत्येन्द्र भी अन्य बच्चों की तरह खेलना कूदना पसंद था। लेकिन उनकी बीमारी हर बार उनके आड़े आ जाती थी। उनके परिजनों ने उनकी समस्याओं का हल और इस बीमारी से निजात दिलाने के लिए काफी कोशिशें की। लेकिन हर कोशिश नाकाम रही।

अपनी कमजोरी को बनाया ताकत

सत्येन्द्र सिंह ने बातचीत में बताया कि कुछ समय बीत जाने के बाद अपनी इस कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाने का फैसला किया। मैनें अपने ही गांव की वेसली नदी में तैरना शुरू किया। जब गांव वाले उन्हें नदी में तेजी से तैरते हुए देखते हुए सभी लोग हैरान रहे जाते कि यह दिव्यांग होने के बावजूद इतना तेज कैसे तैर लेता है। कुछ समय बाद उनकी मुलाकात गांव में डाॅ डबास से हुई। जिन्होंने सत्येन्द्र को आगे बढ़ने में काफी मदद की। उन्होंने बताया कि मैनें काफी दिनों तक अपनी स्विमिंग पर मेहनत की। इस दौरान कई गांव वालों और समाजवालों के ताने भी सुनने को मिले की। कि यह कैसे स्विमिंग और स्विमिंग में यह कैसे आगे बढ़ेंगे। लेकिन मैनैं किसी की बात नहीं सुनी और आगे बढ़ता रहा।

साल 2009 में जीता पहला पदक

सत्येन्द्र ने साल 2009 में कोलकाता में पहली बार राष्ट्रीय दिव्यांग तैराकी चैंपियनशिप में हिस्सा लिया। जहां उन्होंने पहली बार कांस्य पदक अपने नाम किया। इसके बाद सत्येन्द्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब तक राष्ट्रीय तैराकी दिव्यांग चैंपियनशिप में 24 स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। सत्येन्द्र ने सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर ही पदक नहीं जीते बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी पदक जीते। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पर अब तक देश के लिए कई जीते हैं।

इंग्लिश और केटलीना चैनल को पार बनाया विश्व रिकॉर्ड

सत्येन्द्र ने हाल ही में इंग्लिश और केटलीना चैनल को पार करके विश्व रिकॉर्ड बनाया था। वें ऐसा करने वाले एशिया के पहले अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग पैरा स्वीमर बने थे। उन्होंने 12℃ तापमान के बीच ठंडे पानी में 14 घण्टे 39 मिनिट तैरकर नॉर्थ आयरलैंड में नॉर्थ चैनल पार किया। इस इवेंट के लिए उनका नाम एशियाई लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में भी दर्ज हुआ है। इसके अलावा सत्येन्द्र अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऑस्ट्रेलियन ओपन पेरा स्विमिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने किया सम्मानित

सत्येन्द्र भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अपनी स्विमिंग के झंड गाढ़ चुके हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन के लिए उन्हें 2019 में देश के सर्वश्रेष्ठ दिव्यांग खिलाड़ी का खिताब भी मिल चुका है। इसके अलावा साल 2020 में तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहित्यिक पुरस्कार से भी उन्हें नवाजा जा चुका है। सत्येन्द्र को मध्यप्रदेश की सरकार की ओर से साल 2014 में विक्रम अवार्ड से भी सम्मानित कर चुके हैं।

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलना रहा यादगार पल

सत्येन्द्र को भारत सरकार और एमपी सरकार की तरफ़ से सम्मानित किया जा चुका है। इन सबके बीच उन्होंने अपने पसंदीदा और यादगार मोमेंट को शेयर करते हुए कहा कि देश के महामहिम राष्ट्रपति से मिलना और देश के यशस्वी प्रधानमंत्री से मिलना से उनके लिए सबसे गौरवान्वित करने वाले और यादगार पल थे। जिन्हें शायद ही वें कभी भूल पाएंगे।

दिव्यांग को सत्वांन नहीं हौसला दे

सत्येन्द्र ने पाठकों को लेकर संदेश देते हुए कहा कि देश में दिव्यागों को हमेशा सत्वांन क्यों दी जाती है। उन्हें कभी आगे बढ़ने का हौसला क्यों नहीं दिया जाता है। मैं सभी से कहना चाहता हूं कि आप सभी दिव्यागों को हौसला दे साथ ही मैं चाहूंगा कि सभी दिव्यांग अपनी कमजोरियों को ही अपनी ताकत बनाकर आगे बढ़े।

द गुड न्यूज सत्येन्द्र सिंह साहसी और दृढ़संकल्प वाले युवकों को सलाम करता है। जो विभिन्न चुनौतियों का सामना कर अपने मुकाम पर पहुंचे और देश के कई युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने।

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