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एक आंख की रोशनी गंवाने वाली रिक्शा चालक की बेटी ने जीता स्वर्ण पदक, रिक्शा चालक पिता को किया गौरवान्वित

भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति डाॅ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि यदि आप में सपनों को देखने की हिम्मत होती है, तो आपमें उन सपनों को पूरा करने की भी हिम्मत होती है। इसका ताजा उदाहरण हमें मेरठ की शमा परवीन के रूप में देखने को मिला। जिन्होंने मुश्किल हालातों में पढ़ाई की और एक आंख की रोशनी गंवाने के बावजूद जिला टॉपर बनने से लेकर विश्वविद्यालय में स्वर्ण पदक हासिल करने तक का सफर तय किया और अपने रिक्शा चलाने वाले पिता को गौरवान्वित किया।

एक साल की उम्र में गंवा दी थी आंख की रोशनी

शमा परवीन उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर की गुलावटी की रहने वाली एक बिटिया है। जिनके पिता ऑटो चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं। शमा ने महज एक साल की उम्र में अपनी एक आंख की रोशनी गंवा दी थी। लेकिन उन्होंने इसके बाबजूद पढ़ाई जारी रखी। उन्होंने पहले अपने शहर से स्कूल की पढ़ाई की। उन्होंने स्कूल के दौरान भी पढ़ाई में जिले में नंबर सर्वोच्च स्थान हासिल किया था।

राज्यपाल ने किया सम्मानित

शमा ने तीन वर्ष बुलंदशहर रोड हापुड में अपने फूफा आसमौहम्मद के यहाँ रहकर शिक्षा ग्रहण की है। उन्होंने बीएससी गणित में 89.80 अंक प्राप्त कर विश्वविद्यालय मे प्रथम स्थान प्राप्त किया है। उन्हें हाल ही में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने स्वर्ण पदक सौंपकर सम्मानित किया। शमा के पिता के लिए यह पल गौरवान्वित करने वाले रहे।

आईएएस बनना है सपना

शमा ने बताया कि वह अपने भाई – बहनों में सबसे बड़ी हैं, ऐसे में उन पर बड़ी जिम्मेदारी है। वह एक आंख से दृष्टि बाधित हैं। उनकी इस कमी के कारण उन्हें लोगों के ताने सुनने पड़ते थे लेकिन उन्होंने हमेशा बाहरी सुंदरता को महत्व देने की बजाए अंदरूनी सुंदरता को निखारने की कोशिश की। उनका सपना आईएएस बनना है।

पिता ने दी सपनों को उड़ान

शमा की उपलब्धि पर उनके पिता बड़े खुश नजर आए। उन्होंने बताया कि जब शमा मात्र एक साल की थीं, तभी उनकी एक आंख की रोशनी चली गई थी। इसके बावजूद उन्होंने अपनी बिटिया के सपनों को उड़ान दी और इसी उड़ान से बिटिया आज आसमान छू रही है। उनका मनाना है कि परस्थितियां चाहे कैसी भी हो लेकिन हमें बच्चों को जरूर पढ़ाना चाहिए।

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