गुड न्यूज़प्रेरणादायक कहानियां

Captain Cool मिस्टर कप्तान महेंद्र सिंह धोनी

सितंबर 2007 में राहुल द्रविड़ से एकदिवसीय कप्तानी लेकर धोनी को सौंप दी गई और उसी महीने घोषित हुई T-20 टीम की कप्तानी भी माही के हिस्से आई।

DHONI – भारतीय क्रिकेट टीम में अक्सर महानगरों के खिलाड़ी ज्यादा नजर आते थे। इस सिलसिले को तोड़ने में जिस खिलाड़ी ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वह एक नाम महेंद्र सिंह धोनी का ही रहेगा। हमेशा…! भारत का सबसे सफल कप्तान। पहले 4 वनडे मुकाबलों में केवल 22 रन बनाने वाले जिस धोनी को यह आईडिया तक नहीं था कि उन्हें पांचवां मैच मिलेगा या नहीं, उन्होंने विश्व क्रिकेट का इतिहास हमेशा-हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। धोनी की कप्तानी में भारत ने 24 सितम्बर 2007 को टी-20 वर्ल्ड कप, 2 अप्रैल 2011 को वनडे वर्ल्ड कप और 23 जून 2013 को चैंपियंस ट्राॅफी जीती। ऐसा करने वाले धोनी इकलौते भारत के एकलौते कप्तान हैं।

सफलता की दास्तान तो अब हर कोई जानता है लेकिन हम शुरुआत कांटों भरे सफर से करते हैं। जब धोनी ने क्रिकेट खेलना शुरू किया तो बिहार में सुरक्षित भविष्य को लेकर इसकी कोई खास अहमियत नहीं थी। मतलब मंजिल हासिल करने को लेकर अनिश्चितता का दौर। वहां से भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बना पाना अपने आप में किसी परीकथा से कम नहीं है।

भरोसा नहीं होता 2007 में जो लोग धोनी के रांची वाले घर को भारत की वर्ल्ड कप में हार के बाद आग लगा देना चाहते थे , वही लोग उसी साल T-20 वर्ल्ड कप की जीत के बाद आतिशबाजी करते हुए धोनी की एक झलक पाने को बेताब खड़े थे। धोनी ने 6 महीने में सब बदल कर रख दिया था। इस पूरे घटनाक्रम के बारे में आगे बताएंगे लेकिन अब आपको लेकर चलते हैं साल 1992…!

छठी कक्षा के स्टूडेंट थे और स्कूल फुटबॉल टीम के गोलकीपर। क्रिकेट टीम के विकेटकीपर का परिवार बेटे की पढ़ाई को लेकर सीरियस था। उधर उसका पत्ता कटा और इधर धोनी की बतौर विकेटकीपर क्रिकेट टीम में एंट्री हो गई। इसी उम्र से धोनी खेल को लेकर बहुत जुनूनी थे। बाकी दुनिया पढ़ाई के बाद बचे समय में क्रिकेट खेला करती थी, धोनी क्रिकेट से बचे समय में थोड़ी-बहुत पढ़ाई कर लेते थे। मेहनत रंग लाई और छोटी सी उम्र में बड़ा नाम बन गया। धोनी को क्रिकेट खेलते देखने के लिए कई किलोमीटर दूर से लोग फील्ड पर पहुंच जाते थे।

बिहार-झारखंड में टेनिस बॉल स्टार प्लेयर्स को 500-1000 रुपए देकर टूर्नामेंट खेलने बुलाया जाता है। उस दौर में दिन से लेकर रात तक होने वाले मुकाबलों में धोनी से बड़ा टेनिस बॉल बल्लेबाज पूरे इलाके में दूसरा नहीं था। लोग धोनी के खेल पर जान छिड़कते थे और साथ में अफसोस भी करते थे कि दिल्ली-मुंबई में होता तो आसानी से इंडियन टीम में जगह बना लेता। यहां तो प्रतिभा गांव-मोहल्ले की मिट्टी में दम तोड़ देगी।

पर कहते हैं ना कि अगर ऊपर वाले ने प्रतिभा दी है तो दुनिया के सामने लाने का जरिया भी वही देगा। 18 साल की उम्र में धोनी ने बिहार की तरफ से रणजी खेला। 22 के हुए तो पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में बतौर टिकट कलेक्टर नौकरी लग गई। छोटे शहरों की बड़ी समस्या यही होती है कि बच्चों को जब तक सरकारी नौकरी ना मिल जाए, मां-बाप आसमान सर पर उठाए रहते हैं। नौकरी चाहे चपरासी की ही क्यों ना हो लेकिन सरकारी होनी चाहिए। माही ने नौकरी कर तो ली लेकिन रास नहीं आई। रेलवे की तरफ से क्रिकेट खेले और एक दिन सब कुछ छोड़कर घर लौट गए।

धोनी रेलवे के काम में सबसे बेहतरीन थे लेकिन फिर भी उनके सीनियर माही से बहुत जलते थे। यह काम भी करता है और क्रिकेट भी खेल लेता है, कैसे? हमारी जिंदगी नौकरी करते हुए बर्बाद हो रही है तो इसकी आबाद कैसे होने दें? जानबूझकर धोनी को हद से ज्यादा काम दिया जाता था और उनका कॉन्फिडेंस तोड़ने की भरसक कोशिश की जाती थी। इन सब चक्कर में पड़ कर धोनी की जिंदगी थम गई थी। खैर, माही हिम्मत करके लौट आए और खुद को क्रिकेट में झोंक दिया। पिता नाराज हुए लेकिन धोनी ने उन्हें मना लिया।

2003-04 में इंडिया ए की टीम केन्या और जिंबाब्वे के दौरे पर जा रही थी। धोनी को चुन लिया गया। 7 कैच…4 स्टंपिंग…और 7 मुकाबलों में कुल 362 रन। माना कि विरोधी टीमें कमजोर थीं लेकिन अगर वहां ताकत नहीं दिखाते, तो शायद टीम इंडिया में कभी जगह नहीं बना पाते। उस वक्त सोशल मीडिया का दौर नहीं था लेकिन तब भी पूरे देश में कोहराम मच गया। कहा गया कि लंबी जुल्फों वाला एक बल्लेबाज आया है, जो हेलीकॉप्टर उड़ाकर छक्का मारता है। 2004 में भारत के लिए डेब्यू किया लेकिन बगैर खाता खोले आउट। अगली कुछ पारियां भी सस्ते में सिमट गईं।

डर था कि एक तो छोटा शहर और उस पर से कोई बैकिंग भी नहीं, अगर जल्दी बल्ला नहीं बोला तो शायद भारतीय टीम में जगह नसीब नहीं होगी। वनडे की पहली 4 फ्लॉप पारियों के बाद विशाखापत्तनम का मैदान और पाकिस्तान के खिलाफ 123 गेंदों पर 148 रन। सबसे बड़े अपोजिशन के खिलाफ सबसे बड़ी पारी…! अब तो कोई माई का लाल चाह कर भी माही का बाल बांका नहीं कर सकता था। थोड़े ही दिनों के बाद श्रीलंका के खिलाफ किसी भी विकेटकीपर बल्लेबाज की तरफ से खेली गई 183 रनों की सबसे बड़ी पारी। एक दिवसीय सीरीज भारत के नाम और धोनी को मैन ऑफ द सीरीज का खिताब। अब यह तय हो गया था कि ये खिलाड़ी लंबा खेलेगा।

वनडे वर्ल्ड कप 2007 में भारतीय टीम का प्रदर्शन शर्मनाक रहा और हार के बाद क्रिकेट फैंस का गुस्सा भड़क उठा। कुछ लोग नाराजगी में माही के घर को आग लगा देना चाहते थे। उनके घर के बाहर भीड़ काफी बढ़ गई और मुर्दाबाद के नारों से आसमान भर गया। जिस शहर ने धोनी का क्रिकेट के प्रति जुनून देखा था, आज वही शहर माही के लिए अपशब्द सुन रहा था।

सितंबर 2007 में राहुल द्रविड़ से एकदिवसीय कप्तानी लेकर धोनी को सौंप दी गई और उसी महीने घोषित हुई T-20 टीम की कप्तानी भी माही के हिस्से आई। धोनी की रणनीति रंग लाई और पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल में आखिरी ओवर कम अनुभवी जोगिंदर शर्मा को देकर धोनी ने इतिहास बना दिया। भारत T-20 विश्व कप जीत गया। अब उनके घर के बाहर माही बड़े-बड़े पोस्टर हाथों में लेकर लोग आतिशबाजी कर रहे थे। महेंद्र सिंह धोनी जिंदाबाद के नारों से रांची के साथ-साथ पूरा देश गूंज रहा था। जिस वर्ल्ड कप को सचिन और द्रविड़ जैसे सीनियर्स ने छोटा-मोटा समझकर खेलने से इंकार कर दिया, उसी से धोनी ने समूचे हिंदुस्तान को जश्न के समंदर में डुबा दिया। कप्तान ने रूप में धोनी के नाम आईसीसी टूर्नामेंट की तीनों ट्राफियां हैं। भारत के लिए ऐसा ना तो धोनी से पहले कोई कर सका और ना अबतक माही के बाद…! तो यह था बतौर कप्तान माही का सफर… उम्मीद है आपको पसंद आया होगा।

Back to top button